Chakradhari Song Download - Vinay Katoch, Siddharth

Chakradhari

Singer: Vinay Katoch, Siddharth

Lyric: Vinay Katoch, Siddharth

Music: Vinay Katoch

Category: Bhakti Mp3 Songs

Duration: 04:44 Min

Added On: 07, Nov 2024

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Chakradhari Vinay Katoch Lyrics




हरे कृष्णा हरे कृष्णा

हरे राम हरे राम


मुरलीधर आओ

आओ विपदा घिर आयी

मुरलीधर आओ

आओ विपदा घिर आयी

द्रोपदी रोवे लाज बचाओ

आओ आओ गिरधारी

संकट हर लो ना

साहस भर दो ना

जपता हूँ बस नाम तेरा


कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने

प्रणतक्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः


कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने 

प्रणतक्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः


हरे कृष्णा हरे कृष्णा

कृष्णा कृष्णा हरे हरे

हरे राम हरे राम

राम राम हरे हरे


हरे कृष्णा हरे कृष्णा

कृष्णा कृष्णा हरे हरे

हरे राम हरे राम

राम राम हरे हरे


ध्यान तेरा व्याख्यान तेरा

करे दास तेरा ये पुकारे कहीं से

नाम तेरा गुणगान तेरा

तेरे कानों में पड़ जाये कहीं से

बांस तेरा और धाम तेरा

मुरली की धुन बज जाये कन्हैया

श्वांस तेरा हो साथ तेरा

बस ये जीवन तर जाये कहीं से

मैं सुना के संसार गाथा

घनश्याम भेंट कर दूँ

गुणों से है परे जो पीड़ा बता के

जब सुजल नेत्र कर दूँ

मैं जब चूर बैठा पीड़ा बताऊ

तेरे अलावा किस शरण जाऊ

मन में ये एक बस बात लाके

दुःख तेरे नाम कर दूँ

मधुसुदना, वध पूतना का

जैसे किया था तुमने

तुम बने थे सारथी

मुझ पर्थ के

जीवन साधा तुमने

वैसे ही...

करुणा का एक धनुष बना

और कृपा बाण से युक्त सदा

वर्षा बाण की कर दो जैसे

वो युद्ध करे तुमने

अब मैं कर्तव्यों से विमुख पड़ा

गांडीव हाथ से छूट रहा

शरीर कांपता दृश्य देख

मेरे देह का है हर रोम खड़ा

हे केशव मेरी बुद्धि भ्रम में

रह ना सकूँ अभी और खड़ा

गुरु तुम्हें है माना

अब हे श्याम आओ

तेरी शरण पड़ा


हां..


मुरलीधर आओ

आओ विपदा घिर आयी

मुरलीधर आओ

आओ विपदा घिर आयी

अर्जुन बोले राह दिखाओ

आओ आओ गिरधारी

संकट हर लो ना

साहस भर दो ना

जपता हु बस नाम तेरा


कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने

प्रणतक्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः


कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने

प्रणतक्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः


हरे कृष्णा हरे कृष्णा

कृष्णा कृष्णा हरे हरे

हरे राम हरे राम

राम राम हरे हरे


हरे कृष्णा हरे कृष्णा

कृष्णा कृष्णा हरे हरे

हरे राम हरे राम

राम राम हरे हरे


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे